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आ जा॒तं जा॒तवे॑दसि प्रि॒यं शि॑शी॒ताति॑थिम्। स्यो॒न आ गृ॒हप॑तिम् ॥४२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā jātaṁ jātavedasi priyaṁ śiśītātithim | syona ā gṛhapatim ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। जा॒तम्। जा॒तऽवे॑दसि। प्रि॒यम्। शि॒शी॒त॒। अति॑थिम्। स्यो॒ने। आ। गृ॒हऽप॑तिम् ॥४२॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:42 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:29» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:42


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वानों को चाहिये कि श्रेष्ठ गृहस्थों का सत्कार करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् जनो ! (जातवेदसि) प्राप्त हुई विद्या जिसमें उसमें (आ, जातम्) अच्छे प्रकार प्रसिद्ध (प्रियम्) प्रिय (अतिथिम्) अतिथि के समान वर्त्तमान को (स्योने) सुख में (गृहपतिम्) गृह के स्वामी को (आ, शिशीत) अच्छे प्रकार तीक्ष्ण करिये ॥४२॥
भावार्थभाषाः - जो व्याप्त बिजली को प्रज्वलित कराते हैं, वे सब स्थानों में विजय आदि को प्राप्त होते हैं ॥४२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वद्भिः सद्गृहस्थाः सत्कर्त्तव्या इत्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! जातवेदस्याऽऽजातं प्रियमतिथिमिव स्योने गृहपतिमा शिशीत ॥४२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (जातम्) प्रसिद्धम् (जातवेदसि) जातविद्ये (प्रियम्) कमनीयम् (शिशीत) तीक्ष्णीकुरुत (अतिथिम्) अतिथिवद्वर्त्तमानम् (स्योने) सुखे (आ) (गृहपतिम्) गृहस्वामिनम् ॥४२॥
भावार्थभाषाः - ये व्याप्तां विद्युतं प्रज्वालयन्ति ते सर्वत्र विजयादिकमाप्नुवन्ति ॥४२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे व्याप्त असलेली विद्युत प्रज्वलित करवितात ते सर्वत्र विजय प्राप्त करतात. ॥ ४२ ॥